श्री श्रीयादे माता पावन धाम झालामण्ड दर्शन | Shri Yade Mata Mandir Jodhpur Rajasthan

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श्री श्रीयादे माता पावन धाम झालामण्ड दर्शन | Shri Yade Mata Mandir Jodhpur Rajasthan

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भक्त शिरोमणि श्री श्रीयादे माता का जन्म सतयुग के प्रथम चरण पाटण में लायइजी जलान्धरा की पुत्री के रूप में माध सुदी 2 (दूज) को हुआ,वे बचपन से ही घर्म भीरू थी। उनके गुरू उड़न ऋषि थे। श्री श्रीयादे का विवाह गढ़ मुलतान के सावंतजी के साथ हुआ। आपके दो पुत्र एवं एक पुत्री थी। गढ़ मुलतान हिरण्यकश्यप की राजधानी था। हिरणकश्यप को ब्रह्माजी ने उसकी तपस्य के कारण अमर रहने का वरदान दिया कि वह न आकाश में मरेगा ,न जमीन पर ,न घर में न बाहर ,न दिन में न रात में ,नर से न पशु से न शस्त्र से न अस्त्र से आदि वरदान पाकर हिरण्यकश्यप ने राज्य की जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। भगवान के नाम लेने पर पाबन्दी लगा दी व घर्म कार्यो पर रोक लगा दी। सावंतजी व श्री श्रीयादे माता का परिवार ही वहां पर गुप्त रूप से भक्ति करते थे व मिट्टी केबर्तन बनाते थे। समय बीतता गया हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद मित्रों सहित गुरूकुल जा रहे थे, मार्ग में श्री श्रीयादे माता का निवास स्थान दिखा वहां न्याव में मिट्टी के बर्तन पकाये जा रहे थे। न्याव दहक रहा था। न्याव के पास श्री श्रीयादे माता व सावंतजी आसूं बहाते-बहाते हरि नाम हरि नाम ही रट लगा रहे थे। प्रहलाद हरि नाम को सुन कर रूके व कहां कि तुम्हें मेरे पिता की आज्ञा मालूम नही है ,तुम मेरे पिता का नाम क्यो नही लेते। तुम्हें क्या दुख है तब श्री श्रीयादे माता ने कहां कि तुम्हारे पिता से बढ़कर मेरे हरि है जो सब की रखा करते है। माता के पास बिल्ली म्याउं-म्याउं कर रो रही थी। माता ने कहा कि भूल से बिल्ली के बच्चों वाला मटका न्याव में पकने के लिए रख दिया जिसमें बिल्ली ब्याई हुई थी। बिल्ली के बच्चों की रक्षा के लिए हरि से प्रार्थना कर रहें थे। हरि नाम कि महिमा से बिल्ली के बच्चे दहकते हुए न्याव में पकने के बाद जीवित निकल गये व प्रहलाद ने हरि नाम का प्रभाव अपनी आंखों से देखा व बिल्ली के जीवित बच्चों वाला मटका देखा वह एक दम कच्चा था ,बाकि सारे मटके पक गये। माता ने हरि नाम का मंत्र याद दिलाया व हरि नाम लिया तब से प्रहलाद ने श्री श्रीयादे माता को गुरू माना व प्रहलाद भी हरि नाम जपने लगे।इस तरह श्री श्रीयादे माता ने उस सतयुग में जब राक्षसी प्रभाव बढ़ रहा था तब हरि नाम के चमत्कार को दिखाकर भक्त प्रहलाद के माध्यम से सत्य व घर्म की पुनः स्थापना की।समाज की आराध्य देवी भक्त शिरोमणि श्री श्रीयादे का जन्मोत्सव हर सजातीय बन्धु को प्रति वर्ष मनाना चाहियें। भक्त शिरोमणि ने प्रहलाद को हरि नाम का उपदेश देकर प्रलयकारी राजा हिरण्यकश्यप के प्रकोप से सकल-जगत की रक्षा कर हमारे कुम्हार समाज का गौरव बढ़ाया था। आज भारत वर्ष के हर क्षेत्र में मां श्री श्रीयादे माता के मंदिर स्थापित हैै एवं स्वजातिय श्रद्धालुओं की श्री श्रीयादे देवी में गहरी आस्था है उन सभी प्रजापत भाईयों को श्रीयादे मां के उपदेश को अपने जीवन में उतार कर समाज कल्याण सेवाहितार्थ कर्म करने चाहिएं |

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