भाग १५ | राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज भजन| निवडक भजन | BHAJAN SANGRAH | SHRI MOHAN GAIGOL COLLECTION

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७१.
क्या किया क्या किया क्या किया रे।
तूने जीवन गमा दिया क्या किया रे।
जिसे पाना था उसको तो खो दिया रे
था
अमृत को छोड़ा पिता है शराब रे।
भगवान के नाम मुख मोड़ दिया।
तूने जीवन गमा दिया क्या किया रे।।
विषयोके फंदोमे यांधा गया तू ।
संत समागम को भूल गया।
तूने जीवन गमा दिया क्या किया रे।।
पैसो के खातिर करता मिलावट ।
निति और नेकी को छोड़ दिया।
तूने जीवन गमा दिया क्या किया रे।।
तनके घमंड से होगी फजीती।
तुकड्या कहे सब भूल गया।
तूने जीवन गम दिया क्या किया रे
जिसे पाना था उसको तो खो दीया ।।

७२.
अरे ! तैयार हो जाओ, जमाने का पुकारा है।।
समय आया वही आगे, न किसीका भी सहारा है।
खडे हो जाओ अपने बल, मिलेगा तब किनारा है।।
जो हिम्मत छोडके भागे, उसे कायर कहाबेंगे।
न डरता मौत को अपनी, वही साथी हमारा है।।
खुशी है देशकी जिसको, उसीपर प्रेम भारत का ।
चढाओ फूल की माला, लगे घर-घर में नारा है।।
बखत गम से निकल जावे,तो धोखा ही खडा होगा।
वह तुकड्यादास कहता है, अनुभव यह हमारा है।।

७३.
सच्चा धरम नहीं जाना तूने रे भाई ।
सच्चा धरम नहीं जाना ।।
माथेपे चंदन, तिलक लगावे, माला गले में भारी।
गरिबन की तो कदर न जाने,क्या बोलेगा बिहारी ।।
गेहूँ में कंकड, पेढे में आटा, दूधमें पानि मिलावे।
मीठी बातें, कहकर बेचे, कसम धरम की खावे ।।
सरकारी अफसर होकर भी, सेवा करना नहीं सीखा।
अर्जदारों से खाता है पैंसा, देश का गौरव खोता ।।
खालि पडी जो भूमी यह तेरी, मजदूरों को नहिं देता।
देश भिखारी बनाया तूने, देश की इज़त खोता! ।।
अपनी - अपनी नेकिसे चलना,यहि तो ना धर्म सिखाता ?
तुकड्यादास कहे फिर दिनदिन, क्यों पाप सरपे उठाता।।

७४.
नैनन नीर बरसे ! ।।
बिछड गये जबसे मनमोहन !
दिल भटके सारा ही बन-बन ।।
जी न लगे घरसे ! ।।
जैसी बात बनी गोपिन की ।
ग्वाल-बाल-बछडे गौवन की ।।
क्यों रुठे हमसे ? ।।
नीन्द नहीं, छाती धडकावे ।
ना जाने प्राणही उड जावे ।।
दिलि कापे डरसे ! ।।
तुकड्यादासकहे,फिर आओ।
एक बार फिर दर्श दिखाओ ।।
जब-तन-मन हरणे ! ।।

७५.
मरना हक का बाणा है, जीना उधार आना है ||
मेरा मेरा करते करते सारी उम्र गमाया |
मेरा तो चुहे ने लुटा , काल बला ने खाया है ||
राजा के महाराजा मर गये , रय्यत कौन बयाना |
तुमको हमको, सब दुनियाको , एक ही मार्ग जाना है ||
अमीर उमरा मरते देखे , इनका नही ठिकाना |
बडे बडे थे वली-अवलिया दिखता नही निशाना ||
कहत तुकड्या वही जीते है , जो जीते मर जाते |
उनको नही है आना -जाना , तो मरना बतलावे ||

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